जब इंसानियत मर जाती है: फ़्लैट वालों की राक्षसी प्रवृत्ति और बेज़बान जीवों पर हमले

जब इंसानियत मर जाती है: फ़्लैट वालों की राक्षसी प्रवृत्ति और बेज़बान जीवों पर हमले लेखक – रोहित कुमार, इंसाफ़ एक्सप्रेस शहरों की ऊँची-ऊँची इमारतों में रहने वाले कुछ लोग आजकल ऐसा व्यवहार कर रहे हैं कि उनकी मानवता पर संदेह होना स्वाभाविक है। जिन लोगों के पास आराम, संसाधन और सुरक्षा है, वे अक्सर […]

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कानून का जानवरों के लिए काम करना – समाज की नई दिशा

कानून का जानवरों के लिए काम करना – समाज की नई दिशा लेखक – रोहित कुमार, इंसाफ़ एक्सप्रेस जब कानून किसी देश में जानवरों की सुरक्षा के लिए सक्रिय रूप से काम करने लगता है, तो यह केवल पशु अधिकारों की रक्षा नहीं, बल्कि पूरे समाज की नैतिकता को ऊँचा उठाने का संकेत होता है। […]

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निर्दोषता से क्रूरता तक – समाज का आईना

निर्दोषता से क्रूरता तक – समाज का आईना लेखक – रोहित कुमार, इंसाफ़ एक्सप्रेस जब किसी समाज के छोटे बच्चे किसी मासूम जीव—जैसे गली के कुत्ते या बिल्ली—को पत्थर मारते हैं, डराते हैं या उन्हें तकलीफ़ देते हैं, तो यह केवल एक खेल नहीं होता। यह उस समाज की आत्मा का प्रतिबिंब होता है, जिसने […]

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जानवरों से नफ़रत करने वालों की मानसिक स्थिति

जानवरों से नफ़रत करने वालों की मानसिक स्थिति लेखक – रोहित कुमार, इंसाफ़ एक्सप्रेस समाज में इंसान और जानवर का रिश्ता हमेशा से गहराई लिए रहा है। जहाँ एक ओर कुछ लोग जानवरों को भगवान का रूप मानते हैं, उन्हें भोजन, पानी और आश्रय देते हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो […]

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काश! मोहाली पुलिस अपनी इंसानियत दिखाए और बेजुबानों पर ज़ुल्म करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करे

काश! मोहाली पुलिस अपनी इंसानियत दिखाए और बेजुबानों पर ज़ुल्म करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करे लेखक – रोहित कुमार आज के दौर में इंसानियत की सबसे बड़ी पहचान यह है कि हम उन प्राणियों की भी रक्षा करें जो अपनी पीड़ा व्यक्त नहीं कर सकते — यानी बेजुबान जानवर। लेकिन अफसोस की बात है […]

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क्या मांसाहार हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है या बेज़ुबानों के दर्द को अनदेखा करने की आदत?

क्या मांसाहार हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है या बेज़ुबानों के दर्द को अनदेखा करने की आदत? लेखक – रोहित कुमार जब हम “मानवता” की बात करते हैं, तो उसका असली अर्थ है — संवेदना, करुणा और जीवन के प्रति सम्मान। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या मांसाहार को हम इंसान होने का अधिकार मान लें, […]

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जब फ्लैट्स या सोसायटियाँ नज़रों के सामने आती हैं या कोई उनका ज़िक्र करता है तो शरीर में एक ठंडी लहर दौड़ती है — कि कहीं उन सोसायटियों में बेज़ुबानों पर ज़ुल्म की कोई दास्ताँ तो नहीं लिखी जा रही।

जब फ्लैट्स या सोसायटियाँ नज़रों के सामने आती हैं या कोई उनका ज़िक्र करता है तो शरीर में एक ठंडी लहर दौड़ती है — कि कहीं उन सोसायटियों में बेज़ुबानों पर ज़ुल्म की कोई दास्ताँ तो नहीं लिखी जा रही। — लेखक: रोहित कुमार ऊँची इमारतों की छाँव में बसी ये सोसायटियाँ अक्सर सुरक्षा, साफ़-सफ़ाई […]

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क्या लोगों की इंसानियत मर चुकी है, जो बेज़ुबानों के शरीर को सदियों से नोच-नोचकर खाया जा रहा है और आज तक उन पर ज़ुल्म जारी है?

क्या लोगों की इंसानियत मर चुकी है, जो बेज़ुबानों के शरीर को सदियों से नोच-नोचकर खाया जा रहा है और आज तक उन पर ज़ुल्म जारी है? — लेखक: रोहित कुमार कभी-कभी यह सोचकर रूह काँप जाती है कि इंसान, जिसे सृष्टि का सबसे समझदार और संवेदनशील जीव माना गया है, वही आज सबसे निर्दयी […]

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जब इस दुनिया में इंसान नहीं था, तब धरती पर हरीयाली थी, खुशियाँ थीं — पर इंसान के आने के बाद उसने इस स्वर्ग को खंडहर बना दिया — लेखक: रोहित कुमार कहते हैं, जब इस धरती पर इंसान नहीं था, तब यहाँ जीवन शांत था। पेड़ लहराते थे, नदियाँ मुस्कुराती थीं, परिंदे गाते थे […]

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निर्दोष प्राणियों पर ज़ुल्म — इंसानियत का आईना

निर्दोष प्राणियों पर ज़ुल्म — इंसानियत का आईना लेखक : रोहित कुमार आज हम उस दौर में जी रहे हैं जहाँ इंसान अपने आपको सबसे बुद्धिमान प्राणी समझता है, लेकिन शायद यही बुद्धिमानी उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन चुकी है। शहरों और गाँवों की गलियों में घूमते आवारा या “स्ट्रे” कुत्ते, जो कभी इंसान के […]

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