निर्दोष प्राणियों पर ज़ुल्म — इंसानियत का आईना
लेखक : रोहित कुमार
आज हम उस दौर में जी रहे हैं जहाँ इंसान अपने आपको सबसे बुद्धिमान प्राणी समझता है, लेकिन शायद यही बुद्धिमानी उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन चुकी है। शहरों और गाँवों की गलियों में घूमते आवारा या “स्ट्रे” कुत्ते, जो कभी इंसान के सच्चे साथी कहलाते थे, आज इंसान की बेरहमी के शिकार बनते जा रहे हैं।
कभी उन्हें पत्थर मारा जाता है, कभी ज़हर दिया जाता है, कभी सिर्फ़ इसलिए पीटा जाता है क्योंकि उन्होंने खाना माँगा या रास्ते में भौंक दिया। ये वही जानवर हैं जो भूख, प्यास और ठंड से जूझते हुए भी अकसर इंसानों के प्रति वफ़ादारी दिखाते हैं। लेकिन बदले में उन्हें मिलती है सिर्फ़ लात, चोट और बेदर्दी।
क्या हमने कभी सोचा है कि जिस दर्द को हम “जानवर का दर्द” कहकर नज़रअंदाज़ करते हैं, वो भी उतना ही असली होता है जितना किसी इंसान का? उनकी आँखों में भी वही डर, वही दर्द और वही उम्मीद होती है — कि शायद कोई उन्हें भी अपनाएगा।
प्रकृति का संतुलन हर प्राणी के अस्तित्व पर टिका है। जब इंसान किसी निर्दोष जीव पर अत्याचार करता है, तो वह सिर्फ़ उस जानवर को नहीं, बल्कि खुद इंसानियत को चोट पहुँचाता है। ईश्वर का न्याय देर से सही, पर होता ज़रूर है। जिस समाज में दया और करुणा मर जाती है, वहाँ विनाश का आरंभ अपने आप हो जाता है।
अब वक्त आ गया है कि हम अपने रवैये को बदलें। कुत्तों को पत्थर से नहीं, एक रोटी और थोड़ी दया से जवाब दें। क्योंकि ये वही प्राणी हैं जो बिना बोले भी इंसान को इंसानियत का सबक सिखाते हैं।


