कानून का जानवरों के लिए काम करना – समाज की नई दिशा
लेखक – रोहित कुमार, इंसाफ़ एक्सप्रेस
जब कानून किसी देश में जानवरों की सुरक्षा के लिए सक्रिय रूप से काम करने लगता है, तो यह केवल पशु अधिकारों की रक्षा नहीं, बल्कि पूरे समाज की नैतिकता को ऊँचा उठाने का संकेत होता है। किसी सभ्य समाज की पहचान केवल उसकी तकनीकी तरक्की से नहीं होती, बल्कि इस बात से होती है कि वह अपने कमजोर और बेबस प्राणियों के साथ कैसा व्यवहार करता है।
भारत में पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (Prevention of Cruelty to Animals Act) और Animal Birth Control Rules जैसे कानून इस दिशा में एक बड़ी पहल हैं। जब पुलिस, अदालतें और स्थानीय निकाय इन कानूनों को लागू करने लगते हैं, तो यह समाज में एक नई चेतना जगाते हैं—कि जानवर वस्तु नहीं, जीव हैं। उनकी भी भावनाएँ, तकलीफें और अधिकार हैं।
ऐसे कानून लोगों को यह समझाने में मदद करते हैं कि जानवरों के प्रति दया दिखाना कमजोरी नहीं, बल्कि इंसानियत की पहचान है। जब किसी गली के कुत्ते को सुरक्षित रहने का अधिकार मिलता है, या जब कोई व्यक्ति किसी घायल जानवर की मदद करता है और कानून उसका साथ देता है—तो समाज में करुणा और सह-अस्तित्व की भावना बढ़ती है।
धीरे-धीरे यही कानून इंसानों के बीच भी इंसानियत को मजबूत बनाते हैं। जो समाज अपने जानवरों के प्रति संवेदनशील होता है, वह इंसानों के प्रति भी अधिक न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण बनता है।
इसलिए, कानून का जानवरों के पक्ष में काम करना केवल पशु हित नहीं, बल्कि मानवता की दिशा में एक कदम है। यह हमें एक ऐसे भविष्य की ओर ले जा रहा है जहाँ दया, न्याय और जीवन का सम्मान—हर जीव के लिए समान हो।


