बेघर कुत्तों को उनके इलाके से दूर फेंक देने के दुष्परिणाम — एक करुणात्मक पुकार
लेखक : रोहित कुमार
किसी सड़क के कोने पर बैठा एक भूखा, थका हुआ कुत्ता — उसकी आँखों में जो दिखता है, वह सिर्फ़ भय नहीं, उम्मीद भी है। पर जब हम उसे उसके इलाके से दूर फेंक देते हैं, तो हम सिर्फ़ उसका घर नहीं छीनते; हम उसकी जिंदगी, उसकी यादों और उसकी आख़िरी उम्मीदों पर भी प्रहार करते हैं।
पहला और सबसे सीधा नुकसान यह है कि कुत्ते अपने माहौल से जुड़े होते हैं — वहाँ के लोगों, खाने के स्रोत और अपने जान-पहचान वाले रूटीन से। उन्हें अचानक दूसरी जगह छोड़ देने का मतलब है उन्हें बिना सुरक्षा के वहाँ छोड़ देना जहाँ उन्हें रास्ता, खाना और सहारा नहीं मिलता। नये इलाके में उनका सामना ठंड, भूख, बीमारियों और हमलावर जानवरों से होता है। कई बार वे ट्रैफिक में आकर घायल हो जाते हैं या ऐसे इलाकों में पहुँच जाते हैं जहाँ लोग उन्हें पत्थरों और लाठियों से भगा देते हैं।
दूसरा बड़ा नुकसान यह है कि ऐसे बेघर जानवरों की चिंता केवल एक जीव की नहीं रहती—यह समाजिक और स्वास्थ्यगत मुद्दा बन जाती है। डर और तनाव से ग्रसित जानवर आक्रामक हो सकते हैं, बीमारियाँ फैल सकती हैं, और कई बार अनजाने में बच्चे और बुजुर्ग भी प्रभावित होते हैं। लेकिन यह सब उस क्रूरता का परिणाम है जो हमने दिखाई—हमारे कदमों का प्रतिफल।
तीसरा, और सबसे दर्दनाक प्रभाव यह है कि इन क्रूरताओं का प्रभाव हमारी खुद की आत्मा पर पड़ता है। जब हम निर्दोष प्राणियों पर हिंसा करते हैं, तो हम अपने भीतर की संवेदना और दया को कुचल देते हैं। परिवार में अगर किसी ने यह हरकत की, तो वह असर आने वाली पीढ़ियों पर भी पड़ेगा — बच्चों में नफरत और कठोरता की संस्कृति पनप सकती है। ऐसी घटनाओं का नैतिक बोझ हमें और हमारे प्रियजनों को भीतर से चोट पहुँचाता है।
और हाँ — समय के साथ Karma भी काम करता है। जिस तरह हम किसी नन्हे प्राणी के साथ बुरा बर्ताव करते हैं, वही ऊर्जा किसी रूप में लौटकर हमारे जीवन में आ सकती है। बहुत से लोगों की आस्था यह मानती है कि भगवन भी उस क्रूरता को अनदेखा नहीं करेंगे; इंसानियत से कराई जाने वाली किसी भी ज्यादती की सज़ा देर-सबेर मिलती है — नसीहत के रूप में, या जीवन में आने वाली कठिनाइयों के रूप में।
अब वक्त आ गया है कि हम अपनी नज़र बदलें। अगर हम एक कटोरी पानी, थोड़ा खाना, या एक डॉक्टर की मदद किसी घायल कुत्ते के लिए करते हैं, तो हम सिर्फ़ उसकी ज़िन्दगी बचा नहीं रहे होते — हम अपने समाज की आत्मा बचा रहे होते हैं। दया, सहानुभूति और समझ ही इस आधुनिक समाज की सबसे बड़ी ताकत हैं।
आइए, आज से ठान लें — बेघर जानवरों को उकसाने या उनके इलाके से दूर फेंकने की क्रूरता नहीं करेंगे। क्योंकि जहाँ दया होती है, वहीं मानवता रहती है — और वही दुनिया को इंसान बनाती है।


