पुलिस की बेरुख़ी का शिकार — बेज़ुबान फ़रिश्ते
लेखक: रोहित कुमार
जब भी कोई इंसान किसी मासूम जानवर पर ज़ुल्म करता है, तो उसकी शिकायत लेकर लोग पुलिस के पास जाते हैं — पर वहाँ जाकर जो जवाब मिलता है, वह इंसानियत पर सवाल खड़ा कर देता है। पुलिस की डेस्क पर बैठे अफ़सरों के चेहरे पर न दया होती है, न ज़िम्मेदारी। जैसे इन बेज़ुबानों की जान की कोई कीमत ही नहीं।
आज हालात यह हैं कि स्ट्रे डॉग्स, जिन्हें हम भगवान का बनाया हुआ सबसे वफ़ादार और मासूम जीव कह सकते हैं, वे पुलिस की नालायकी की सबसे बड़ी सज़ा भुगत रहे हैं। लोग शिकायत लेकर जाते हैं — कि किसी ने कुत्ते को ज़हर दे दिया, मारा, या इलाक़े से उठा ले गया — मगर जवाब मिलता है, “ये तो जानवर है, छोड़ो।” यही बेरुख़ी इन बेगुनाह प्राणियों की मौत का कारण बनती है।
पुलिस की ठंडी और पत्थर दिल संवेदना ने इंसानियत की आख़िरी सांस भी निकाल दी है। जिन पर समाज की रक्षा का भरोसा है, वही आज रक्षक नहीं, राक्षसों के रक्षक बन चुके हैं।
उनकी नज़र में इन मासूम जीवों की ज़िन्दगी की कोई अहमियत नहीं। यही वजह है कि कई जगहों पर निर्दयी लोग इन कुत्तों को मार देते हैं, ज़हर दे देते हैं या दूर फेंक आते हैं, और पुलिस चुपचाप तमाशा देखती रहती है।
इन गलियों में घूमते हुए ये स्ट्रे कुत्ते किसी को नुकसान नहीं पहुँचाते — बल्कि कई बार भूखे रहकर भी मोहब्बत बाँटते हैं। ये वो फ़रिश्ते हैं जिनके पास आवाज़ नहीं, पर दिल इंसानों से बड़ा है।
लेकिन जब इंसान अपनी “सभ्यता” के नाम पर इन पर अत्याचार करता है और पुलिस अपनी वर्दी के अहंकार में खामोश रहती है — तो असल में राक्षसी चेहरा इंसान का ही सामने आता है, न कि जानवर का।
कहते हैं, भगवान हर जगह नहीं होता — इसलिए उसने कुत्ते बनाए, ताकि इंसानियत को आईना दिखाया जा सके। पर अफ़सोस, इस देश में अब इंसानियत पुलिस की फ़ाइलों की तरह धूल खा रही है।
अगर यही हाल रहा, तो शायद एक दिन इतिहास गवाह बनेगा — जहाँ फ़रिश्ते मर गए और राक्षसों ने इंसानियत की लाश पर जश्न मनाया।


