जानवरों को उनकी जगह से डिसलोकेट न करना क्यों ज़रूरी है: वैज्ञानिक प्रमाण और सच्चाई
लेखक : रोहित कुमार
अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि किसी क्षेत्र में जानवरों—खासकर स्ट्रीट डॉग्स—से परेशानी हो रही है, इसलिए उन्हें “डिसलोकेट” कर देना चाहिए। लेकिन यह न केवल क़ानूनी रूप से ग़लत है, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी पूरी तरह असंगत है। विज्ञान स्पष्ट रूप से बताता है कि जानवरों को उनकी प्राकृतिक या परिचित जगह से हटाना समस्या का समाधान नहीं, बल्कि नई और बड़ी समस्याओं को जन्म देता है।
सबसे पहला वैज्ञानिक कारण है टेरिटोरियल बिहेवियर (क्षेत्रीय व्यवहार)। कुत्ते और कई अन्य जानवर अपने क्षेत्र से गहराई से जुड़े होते हैं। वे अपने इलाके की गलियों, लोगों, भोजन के स्रोत और खतरों को पहचानते हैं। जब उन्हें जबरन कहीं और छोड़ा जाता है, तो वे अत्यधिक तनाव (Stress) में आ जाते हैं। यह तनाव आक्रामकता, बीमारियों और असामान्य व्यवहार को जन्म देता है।
दूसरा महत्वपूर्ण वैज्ञानिक तथ्य है वै큅म इफेक्ट (Vacuum Effect)। रिसर्च बताती है कि किसी इलाके से जानवरों को हटाने पर वह जगह खाली नहीं रहती। कुछ समय बाद वहाँ नए जानवर आ जाते हैं, जो पहले से अधिक अस्थिर और आक्रामक हो सकते हैं। यानी डिसलोकेशन से समस्या खत्म नहीं होती, बल्कि दोबारा पैदा हो जाती है।
तीसरा कारण है इकोलॉजिकल बैलेंस (पर्यावरणीय संतुलन)। स्ट्रीट डॉग्स जैसे जानवर चूहे, कचरे और अन्य छोटे जीवों की संख्या को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। उन्हें हटाने से यह संतुलन बिगड़ता है, जिससे बीमारियाँ और गंदगी बढ़ सकती है।
चौथा और सबसे अहम वैज्ञानिक पहलू है एनिमल वेलफेयर साइंस। अध्ययन बताते हैं कि डिसलोकेट किए गए जानवरों में मृत्यु दर अधिक होती है, क्योंकि वे नए क्षेत्र में भोजन, पानी और सुरक्षा नहीं खोज पाते। कई जानवर अपने पुराने क्षेत्र में लौटने की कोशिश में सड़क दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं।
इसलिए विज्ञान साफ कहता है कि समाधान डिसलोकेशन नहीं, बल्कि नसबंदी (ABC), टीकाकरण, और सामुदायिक देखभाल है। जानवरों को उनकी जगह पर सुरक्षित रखना ही इंसानियत, कानून और विज्ञान—तीनों की सच्ची जीत है।


