SBP city of dreams में रहते हैं कुछ ‘राक्षसी प्रवृत्ति’ के लोग

Animal'S Voice Articals Canada Chandigarh Punjab Social works Voice for voiceless World News अपराध देश विश्व

SBP में रहते हैं कुछ ‘राक्षसी प्रवृत्ति’ के लोग
✍️ लेखक: रोहित कुमार
कहते हैं कि इंसानियत वही है, जब कोई किसी बेज़ुबान के लिए आवाज़ उठाए, उसका दर्द समझे और बिना किसी स्वार्थ के उसकी मदद करे। लेकिन मोहाली की SBP सिटी ऑफ़ ड्रीम्स, खरड़ सोसाइटी में कुछ ऐसे लोग रहते हैं जिन्होंने इंसानियत को पैरों तले रौंद डाला है। इनका ज़हर सिर्फ शब्दों में नहीं, बल्कि सोच में भी भरा हुआ है।
यहाँ रहने वाली एक महिला डॉग फीडर, जो वर्षों से सोसाइटी के बेज़ुबान कुत्तों को खाना देती है, उनकी देखभाल करती है — उसे लगातार धमकियाँ, अपमान और मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है। सोसाइटी के कुछ लोग तो खुलेआम कहते हैं — “मेरी कार में डंडा है, जब चाहूं इन कुत्तों को मार दूं”। कोई उसे ताने मारता है — “इसके बच्चे नहीं हैं, इसके बच्चे तो कुत्ते हैं”। सोचिए, किसी महिला के लिए इतनी घटिया भाषा का प्रयोग करना किस स्तर की नीच मानसिकता को दर्शाता है।
यही नहीं, सोसाइटी के व्हाट्सऐप ग्रुप में बैठे कुछ “घुसपैठिए” — जो वहाँ रहते भी नहीं — दिन-रात महिला फीडर्स को नीचा दिखाने, अपमानित करने और बेज़ुबानों के खिलाफ ज़हर उगलने में लगे हैं। उनकी बातों को पढ़कर ऐसा लगता है मानो उनके दिमाग में इंसानियत नहीं, केवल गंदगी, कीचड़ और घृणा भरी हो।
घटनाएँ यहीं नहीं रुकीं। एक दिन रात को एक शख्स ने पुलिस में झूठी शिकायत दी कि किसी डॉग ने उसकी कार की ब्रेक वायर काट दी। उसने 50,000 रुपये का “हरजाना” महिला फीडर से मांगा। और विडंबना देखिए — रात 9 बजे पुलिस अधिकारी ने भी महिला को कॉल कर कहा कि सुबह 50,000 रुपये उसके घर पर देने होंगे! जबकि कोई भी मशीनी जानकारी रखने वाला व्यक्ति जानता है कि कोई कुत्ता स्कॉर्पियो जैसी कार की ब्रेक वायर काट ही नहीं सकता। फिर भी महिला को ही दोषी ठहराया गया, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह इन बेज़ुबानों को खाना खिलाती है।
यह महिला आज भी पीछे नहीं हटी। उसने इन राक्षसी चेहरों के खिलाफ पुलिस, SDM, DC, SSP मोहाली, CM पंजाब, ह्यूमन राइट्स, वूमेन राइट्स और एनिमल राइट्स संगठनों तक शिकायतें की हैं — और अब मामला अदालत में है। यह महिला अपनी इज़्ज़त, अपनी सुरक्षा और इन मासूम जीवों की ज़िंदगी के लिए एक साथ लड़ रही है।
यह है सच्ची इंसानियत — जब कोई अकेले खड़े होकर, करूर और ज़हरीले समाज के सामने दीवार बन जाए। जो लोग इस महिला को डराने की कोशिश कर रहे हैं, असल में वही इस समाज की असली गंदगी हैं। उन्हें आईने में देखकर खुद से नफ़रत होनी चाहिए, क्योंकि उन्होंने इंसान के रूप में जन्म लेकर भी राक्षसों से ज़्यादा घिनौना रूप धारण कर लिया है।
और उस महिला को — जो भूख, प्यास और दर्द को समझती है — समाज को भगवान के समान सम्मान देना चाहिए। वह न सिर्फ बेज़ुबानों की मसीहा है, बल्कि इंसानियत की अंतिम लौ है जो अंधेरे में भी जलती रही।

Insaf Express